पीरियड्स के दौरान मूड स्विंग्स: एक गहरी और संवेदनशील समझ!
पीरियड्स अपने साथ कई तरह के बदलाव लाते हैं। इसमें दर्द, थकान और शारीरिक असहजता तो शामिल होती ही है, लेकिन भावनात्मक उतार–चढ़ाव कई लोगों के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा बन जाता है। मूड स्विंग्स अक्सर बिना चेतावनी के आते हैं, अलग-अलग समय तक रहते हैं और आत्मविश्वास से लेकर रिश्तों तक, लगभग हर चीज़ को प्रभावित कर सकते हैं।
क्योंकि समाज में इस विषय पर खुलकर बात नहीं होती, कई लोग इन भावनात्मक बदलावों को अपने स्वभाव से जोड़ देते हैं, जबकि असल में यह शरीर की जैविक प्रक्रिया का हिस्सा है।
यह ब्लॉग पीरियड्स के दौरान होने वाले भावनात्मक बदलावों के कारण, उनके प्रभाव और उनसे निपटने के आसान तरीकों पर प्रकाश डालता है। चाहे आप खुद इन परिवर्तनों से गुजर रहे हों या किसी और का साथ देना चाहते हों—थोड़ी समझ चीजों को काफी आसान बना सकती है।
पीरियड्स से पहले और दौरान भावनाएँ क्यों बदलती हैं?
हमारे शरीर में होने वाले हार्मोन केवल शारीरिक प्रक्रियाओं को ही नहीं, बल्कि भावनाओं को भी प्रभावित करते हैं।
पीरियड शुरू होने से ठीक पहले एस्ट्रोजन का स्तर कम होने लगता है और प्रोजेस्टेरोन बढ़ जाता है। यह बदलाव दिमाग में मौजूद उन रसायनों को प्रभावित करता है जो मूड को नियंत्रित करते हैं।
सबसे महत्वपूर्ण रसायन है—सेरोटोनिन, जो खुशी, सुकून और स्थिरता बनाए रखने में मदद करता है।
जब हार्मोनल बदलावों के कारण सेरोटोनिन घटता है, तो:
- चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है
- छोटी बातें बड़ी लगने लगती हैं
- मूड बिना कारण गिर जाता है
- मन बेचैन और भारी महसूस होता है
साथ ही, थकान, क्रैम्प्स और शरीर में दर्द भी भावनात्मक क्षमता को कमजोर कर सकते हैं। जब शरीर थका हुआ हो, मन भी जल्दी निराश हो जाता है।
दैनिक जीवन में मूड स्विंग्स कैसे महसूस होते हैं?
हर व्यक्ति के अनुभव अलग हो सकते हैं, लेकिन कुछ सामान्य भावनात्मक बदलाव अक्सर दिखाई देते हैं। ये बदलाव पीरियड शुरू होने से कुछ दिन पहले दिखाई दे सकते हैं या शुरुआती दिनों तक जारी रह सकते हैं।
सामान्य अनुभव हो सकते हैं:
- ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई
- जल्दी गुस्सा या झुंझलाहट
- अचानक मन का खाली या उदास महसूस होना
- किसी से बात करने का मन न करना
- छोटी बातों से भी भावनात्मक चोट लगना
- बिना कारण रोने का मन
- किसी भी काम के लिए मोटिवेशन का कम होना
कुछ लोगों के लिए ये बदलाव हल्के होते हैं, लेकिन कई लोगों के लिए यह भावनात्मक लहर बहुत भारी भी महसूस हो सकती है। इससे दैनिक काम, रिश्तों और पढ़ाई–काम की क्षमता तक प्रभावित होती है।
वह मनोवैज्ञानिक पक्ष जिसे लोग अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं
समस्या यह नहीं है कि मूड स्विंग्स होते हैं—समस्या यह है कि समाज इसे कैसे देखता है।
कई बार लोगों को सिखाया जाता है कि पीरियड्स या भावनाओं पर बात करना कमजोरी की निशानी है। नतीजा? जब कोई व्यक्ति इन भावनात्मक परिवर्तनों से गुजरता है, तो उसे लगता है कि वह बेवजह भावुक, नाटकिया या कमज़ोर है।
यह चुप्पी अपराधबोध और शर्म पैदा कर देती है। लोग अपनी भावनाओं को दबाने लगते हैं और बिना सहायता के सब झेलने की कोशिश करते हैं। समय के साथ यह भावनात्मक थकान बढ़ा सकती है।
सच्चाई यह है:
ये भावनाएँ किसी की कमजोरी नहीं, बल्कि एक प्राकृतिक शारीरिक प्रक्रिया की प्रतिक्रिया होती हैं। इसे समझना और स्वीकार करना मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद आवश्यक है।
जब भावनात्मक बदलाव सामान्य से अधिक गहरे लगने लगें
अधिकतर मूड स्विंग्स हार्मोनल बदलावों से जुड़े होते हैं और सामान्य माने जाते हैं।
लेकिन कुछ लोगों में लक्षण बहुत तीव्र हो सकते हैं। उदाहरण के लिए:
- PMS (Premenstrual Syndrome)
- PMDD (Premenstrual Dysphoric Disorder) – जो PMS का गंभीर रूप है
इन स्थितियों में भावनात्मक बदलाव इतने ज्यादा हो सकते हैं कि वे रोजमर्रा की जिंदगी को बाधित कर देते हैं।
यदि इनमें से कोई बात महसूस हो, तो सहायता लेना ज़रूरी है:
- लगातार गहरी उदासी
- खुद को नुकसान पहुँचाने के विचार
- अत्यधिक गुस्सा
- किसी भी चीज़ में रुचि का खत्म हो जाना
- बार-बार भावनात्मक टूटना
- पढ़ाई, काम या रिश्ते संभालना मुश्किल होना
- सामाजिक रूप से पूरी तरह दूर हो जाना
ऐसी परिस्थितियाँ सिर्फ साधारण मूड स्विंग्स नहीं होतीं—ये संकेत हैं कि आपको भावनात्मक या मेडिकल सहायता की जरूरत है।
भावनात्मक बदलावों को संभालने के व्यावहारिक तरीके
मूड स्विंग्स का कारण भले ही जैविक हो, लेकिन कुछ आसान आदतें इन्हें संतुलित रखने में काफी मदद कर सकती हैं।
1. शरीर की सुनें, उससे लड़ें नहीं
शरीर जब थका हो तो उसे आराम देना कमजोरी नहीं, देखभाल है।
थोड़ा सा आराम, छोटी-सी नींद, या शांत बैठकर सांस लेना भी मन को हल्का कर देता है।
2. ऐसा भोजन चुनें जो हार्मोनल संतुलन को सहयोग दें
कुछ खाद्य पदार्थ मूड को स्थिर रखने में मदद करते हैं, जैसे:
- मेवे और बीज
- साबुत अनाज
- मौसमी फल–सब्जियाँ
- अंडा, दही या दाल जैसे प्रोटीन
- थोड़ा सा डार्क चॉकलेट
बहुत ज्यादा कैफीन या मीठी चीजें अचानक ऊर्जा गिराकर मूड को और खराब कर सकती हैं।
3. पानी की मात्रा बढ़ाएँ
सिर्फ पानी पीने से भी सिरदर्द, थकान और भारीपन कम होता है।
जब शरीर हल्का महसूस करता है, मन भी शांत रहता है।
4. हल्की शारीरिक गतिविधियाँ
तेज़ एक्सरसाइज़ हमेशा संभव नहीं होती, लेकिन हल्का मूवमेंट काफी राहत देता है:
- टहलना
- हल्का स्ट्रेचिंग
- धीमा योग
- कमरे में आराम से नाचना
ये गतिविधियाँ शरीर में ऐसे प्राकृतिक रसायन रिलीज़ करती हैं जो मूड को बेहतर बनाते हैं और दर्द कम करते हैं।
5. तनाव को बढ़ने से पहले ही संभालें
तनाव और मूड स्विंग्स जब मिल जाते हैं, तो स्थिति और कठिन हो जाती है।
छोटी आदतें भी तनाव कम करने में मदद करती हैं:
- गहरी साँसें
- प्रकृति के बीच समय
- शांत संगीत
- डायरी लिखना
- भरोसेमंद व्यक्ति से बात करना
इनमें पूर्णता की जरूरत नहीं—बस नियमितता मायने रखती है।
6. भावनात्मक सीमाएँ बनाना सीखें
मुश्किल दिनों में किसी बातचीत या काम को टालना गलत नहीं है।
“ना” कहना, बिना अपराधबोध के, मानसिक ऊर्जा को बचाता है।
7. भावनात्मक पैटर्न को ट्रैक करें
डायरी या मोबाइल ऐप में हर महीने के भावनात्मक बदलाव लिखने से पैटर्न समझ आता है।
जब आप जानते हैं कि ये भावनाएँ कब आती हैं, तो आप मानसिक रूप से तैयार रहते हैं।
किसी ऐसे व्यक्ति का समर्थन कैसे करें जो इन बदलावों से गुजर रहा हो
मूड स्विंग्स का सामना कर रहे व्यक्ति को सबसे ज्यादा जरूरत होती है—समझ, सहानुभूति और सम्मान की।
आप इन तरीकों से मदद कर सकते हैं:
- आराम करने के लिए प्रोत्साहित करें
- उनकी भावनात्मक जगह का सम्मान करें
- बिना टोके ध्यान से सुनें
- छोटे-छोटे कामों में मदद करें
- जज करने वाले वाक्यों से बचें
- “यह तो बस पीरियड है” जैसे कमेंट न करें
कभी-कभी सिर्फ शांत उपस्थिति भी किसी को सुरक्षित और समझा हुआ महसूस कराती है।
चक्र के दौरान सकारात्मक माहौल कैसे बनाया जाए?
हमारी भावनाओं पर वातावरण का बड़ा प्रभाव होता है।
कुछ छोटे-छोटे बदलाव मानसिक बोझ हल्का कर सकते हैं:
- साफ और आरामदायक बिस्तर
- हल्की सुगंध
- आरामदायक कपड़े
- कम या मुलायम रोशनी
- पसंदीदा संगीत
यह माहौल मन को स्थिर और शांत बनाने में मदद करता है।
जब भावनाएँ विकास का साधन बन जाती हैं
दिलचस्प बात यह है कि पीरियड्स के दौरान बढ़ी हुई भावनात्मक संवेदनशीलता हमें खुद को समझने में मदद कर सकती है।
इस समय मन उन बातों को सामने लाता है जिन्हें हम आम दिनों में नज़रअंदाज़ कर देते हैं।
आप इस समय अपने बारे में कई बातें समझ सकते हैं:
- छुपा हुआ तनाव
- अधूरी भावनात्मक जरूरतें
- रिश्तों या दिनचर्या में सुधार की जगह
- वे सीमाएँ जिन्हें आपको मजबूत करना चाहिए
इस तरह, यह भावनात्मक लहर सिर्फ चुनौती नहीं होती—कभी-कभी यह आत्मचिंतन का मौका भी बन जाती है।
निष्कर्ष
पीरियड्स के दौरान होने वाले मूड स्विंग्स किसी की भावुकता या कमजोरी का प्रमाण नहीं हैं।
ये शरीर में हो रहे प्राकृतिक बदलावों की प्रतिक्रिया हैं।
जब हम इन भावनाओं को समझते हैं, उनका सम्मान करते हैं और उनके बारे में खुलकर बात करते हैं—तो यह सफर आसान हो जाता है। अपने शरीर को समझना आत्मविश्वास देता है।
दूसरों की भावनाओं का सम्मान रिश्तों को मजबूत बनाता है। और समाज में इस विषय पर खुलापन बढ़ता है, तो लोग खुद को कम अकेला महसूस करते हैं।
पीरियड्स केवल शारीरिक प्रक्रिया नहीं हैं—यह एक भावनात्मक यात्रा है, जिसे प्यार, समझ और धैर्य की जरूरत होती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. पीरियड्स के दौरान मूड स्विंग्स क्यों होते हैं?
हॉर्मोनल बदलाव, खासकर एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के उतार-चढ़ाव, सेरोटोनिन को प्रभावित करते हैं, जिससे मूड बदलता है।
2. क्या सभी को समान मूड स्विंग्स होते हैं?
नहीं। हर व्यक्ति का शरीर अलग होता है। किसी को हल्के बदलाव महसूस होते हैं, किसी को तीव्र।
3. ये मूड स्विंग्स कितने दिनों तक रहते हैं?
आमतौर पर पीरियड शुरू होने से कुछ दिन पहले और शुरुआती दो-तीन दिन तक।
4. क्या खान-पान का असर पड़ता है?
हाँ। पौष्टिक भोजन मूड को स्थिर रखता है और अचानक होने वाले गिरावट को रोकता है।
5. कब डॉक्टर से मिलना चाहिए?
जब भावनाएँ रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित करने लगें, अत्यधिक उदासी हो, या खुद को नुकसान पहुँचाने के विचार आने लगें।
6. क्या व्यायाम मदद करता है?
हल्की गतिविधि जैसे टहलना या योग मूड बेहतर करती है और दर्द कम करती है।
7. क्या ज्यादा भावुक होना सामान्य है?
हाँ, यह पूरी तरह सामान्य है और शरीर की प्राकृतिक प्रतिक्रिया का हिस्सा है।
Disclaimer:
यह जानकारी सामान्य जागरूकता के लिए है। किसी भी प्रकार की गंभीर भावनात्मक या शारीरिक समस्या होने पर विशेषज्ञ से सलाह ज़रूर लें।
यह जानकारी चिकित्सीय सलाह का विकल्प नहीं है. अपने उपचार में कोई भी बदलाव करने से पहले अपने स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से परामर्श लें। मेडविकी पर आपने जो कुछ भी देखा या पढ़ा है, उसके आधार पर पेशेवर चिकित्सा सलाह को अनदेखा या विलंब न करें।
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